Bharat Solanki

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लेखनी कहानी -29-Feb-2024

              प्रेम की हथकदी

घाव मन का ना चाहकर भी खिलता है। दार तन का हा पनाह पाकर भी मिलता है । उदास मन चाहत के धानों में रहकर समझावश की तराजु में ही खिलता है।

मन मिलाप तो बालो बालो के रूठने से चाहत की तिजोरी में बैठ जाते हैं !

दुर रहकर वो मन, अपने पन से खिलता है। पदन पर लगे धावो यादो की सुई से सिलता है। धागा बेवफाई का, आज निलाम पर टीकाकर बोली लगाने को तैयार होकर 8 भी लोक लिहाज से टलता है।

मन मिलाप का आपा उठने से यह चाहत की तिजोरी पागलपन की कैद हो जाती है

खोना पडता है प्रेमी को प्रेमिका का तो याद गार का सारा पल रोना पड़ता है एक दूसरे की आखरी तानो का प्रम आगार का यारा दिल

मन-मिलाप तो आज दिलो में उगने वाली वो मौषधि है जो आवारापन से मेड होती है।

हिम्मत किसमे की चाटुकारो का दाव पलट कर रखने का खुद चलते हैं खुद रखते है दाव हवलदारो सा प्रेम पुजारी को हवालात में रखने का

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4 Comments

Varsha_Upadhyay

02-Mar-2024 07:39 PM

Nice

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Mohammed urooj khan

02-Mar-2024 11:46 AM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Gunjan Kamal

01-Mar-2024 11:23 PM

शानदार

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